दरिया तो है वो, जिस से किनारे छलक उठाये
बहते हुए पानी को मै दरिया नही कहता
गहराई जो दी तुने मेरे ज़ख्म ए जिगर को
मै इतना समुंद्र को भी गहरा नही कहता
किस किस की तम्मना मे करू प्यार को तक़सीम
हर शक़स को मै जान ए तम्मना नही कहता
करता हूँ मै, अपने गुनाहो पे बहुत नाज़
इंसान हूँ मै खुद को फरिश्ता नही कहता
No comments:
Post a Comment