1 Jun 2011

ढूंढ़ता तन्हाइयों को इक खुले आकाश में|

ढूंढ़ता तन्हाइयों को,
इक खुले आकाश में|
देखता परछाइओं को,
मौत की तलाश में|

आसमां भी रो पड़ा,
ये सोच तनहा है सफ़र|
एक टक वो देखता,
आए कहीं कोई नज़र|
देरों तलक निहारता,
शायद किसी की आस में|
ढूंढ़ता तन्हाइयों को,
इक खुले आकाश में|

चाँद-तारे सब के सब,
जानते हर बात को|
देखा है सबने साथ ही,
आसमां की बरसात को|
भींगतें हैं वो सभी,
रह आसमां के पास में|
ढूंढ़ता तन्हाइयों को,
इक खुले आकाश में|

चातक को है क्या पड़ा?
स्वाति की इक बूंद का|
चकोर भी है बावड़ा,
चाँद की इक धुन्द का|
जाने क्यूँ परेशां हैं सब?
गुमनाम-से इक प्यास में|
ढूंढ़ता तन्हाइयों को,
इक खुले आकाश में|

बुझती चिराग अब,
जोर है तूफान का|
टूटती दिवार अब,
हर पक्के मकान|
पत्थरों में देख करुणा,
जाने जीतें हैं क्यूँ विश्वास में?
ढूंढ़ता तन्हाइयों को,
इक खुले आकाश में|

ऐ दिल तूँ सुन यूँ ना मचल,
ये असर है उनके साथ का|
वादा किया करतें हैं वो,
क्या भरोसा बात का?
तूँ गुम है इतना क्यूँ भला?
दो पल के एहसास में|
ढूंढ़ता तन्हाइयों को,
इक खुले आकाश में|

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