4 Jun 2011

हम जवाब क्या देते

पत्थर की है दुनियाँ जज़्बात नही समझती
दिल मे क्या है वो बात नही समझती
तन्हा तो चाँद भी है सितारो के बीच
मगर चाँद का दर्द बेवफा रात नही समझती
हम दर्द झेलने से नही डरते
पर उस दर्द के खत्म होने की कोई आस तो हो
दर्द चाहे कितना भी दर्दनाक हो
पर दर्द देने वाले को उसका एहसास तो हो
उनको अपने हाल का हिसाब क्या देते
सवाल सारे गलत थे हम जवाब क्या देते
वो तो लफ्ज़ो की हिफाज़त भी ना कर सके
फिर उनके हाथ मे ज़िन्दगी की पुरी किताब क्या देते

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