18 Dec 2011

मैं तो यादों के चरागों को जलाने में रहा

मैं तो यादों के चरागों को जलाने में रहा  
दिल कि दहलीज़ को अश्कों से सजाने मे रहा  

मुड़ गए वो तो सिक्को की खनक सुनकर 
मैं गरीबी की लकीरों को मिटाने में रहा

3 Dec 2011

तो क्या बात हो

किताबों के पन्ने पलट कर सोचते हैं,
यूँ ही पलट जाये जिंदगी तो क्या बात हो |
तमन्ना जो पूरी हो ख्वावों में,
हकीक़त बन जाये तो क्या बात हो |

कुछ लोग मतलब के लिए ढूंढते हैं मुझे,
बिन मतलब कोई आये तो क्या बात हो |
क़तल करके तो सब ले जायेंगे दिल मेरा,
कोई बातों से ले जाये तो क्या बात हो |
जो शरीफों की शराफत में  बात न हो,
एक शराबी कह जाये तो क्या बात हो |
जिंदा रहने तक तो ख़ुशी दूँगा सबको,
किसी को मेरी मौत से ख़ुशी मिल जाये तो क्या बात हो

2 Dec 2011

भीग गया पैराहन

भीग गया पैराहन तमाम, दोस्तों के आंसू पोंछने में!
क्यूँ कोई कन्धा हमें रोने के लिए नसीब ना हुआ?
नज़दीक तो आये कई हमसफ़र ज़िंदगी में,
किस्मत है अपनी ऐसी के कोई 'करीब' ना हुआ!

उसने कहा सुन

उसने कहा सुन
अहद निभाने की ख़ातिर मत आना
अहद निभानेवाले अक्सर मजबूरी या
महजूरी की थकन से लौटा करते हैं
तुम जाओ और दरिया-दरिया प्यास बुझाओ
जिन आँखों में डूबो
जिस दिल में भी उतरो
मेरी तलब आवाज़ न देगी
लेकिन जब मेरी चाहत और मेरी ख़्वाहिश की लौ
इतनी तेज़ और इतनी ऊँची हो जाये
जब दिल रो दे
तब लौट आना
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