30 Jan 2011

कभी उनकी याद आती है कभी उनके ख्व़ाब आते हैं,

कभी उनकी याद आती है कभी उनके ख्व़ाब आते हैं,
मुझे सताने के सलीके तो उन्हें बेहिसाब आते हैं।

कयामत देखनी हो गर चले जाना उस महफिल में,
सुना है उस महफिल में वो बेनकाब आते हैं।

कई सदियों में आती है कोई सूरत हसीं इतनी,
हुस्न पर हर रोज कहां ऐसे श़बाब आते हैं।

रौशनी के वास्ते तो उनका नूर ही काफी है,
उनके दीदार को आफ़ताब और माहताब आते हैं।

शख़्सियत

अल्फ़ाज़ों मैं वो दम कहाँ जो बया करे शख़्सियत हमारी,
रूबरू होना है तो आगोश मैं आना होगा ।

यूँ देखने भर से नशा नहीं होता जान लो साकी,
हम इक ज़ाम हैं हमें होंठो से लगाना होगा ......

हमारी आह से पानी मे भी अंगारे दहक जाते हैं ;
हमसे मिलकर मुर्दों के भी दिल धड़क जाते हैं ..

गुस्ताख़ी मत करना हमसे दिल लगाने की साकी ;
हमारी नज़रों से टकराकर मय के प्याले चटक जाते हैं॥

25 Jan 2011

मैं पट्रीयों की तरहा ज़मी पर पड़ा रहा
सीने से गम गुज़रते रहे रेल की तरह

--मुनव्वर राणा

नादान है वो कितना कुछ समझता ही नही है फ़राज
सीने से लगा के पूछता है कि धडकन तेज क्यो है ?

--अहमद फराज़

बिछड़ना उसकी ख्वाहिश थी न मेरी आरजू लेकिन
जरा सी हिचक ने...ये कारनामा कराया है
--अज्ञात

अब देखते हैं हम दोनों कैसे जुदा हो पायेंगे
तुम मुकद्दर का लिखा कहते हो हम अपनी दुआ को आजमाएंगे
--अज्ञात


मौत भी कम खूबसूरत तो नहीं होगी
जो इसको देखता है जिंदगानी छोड़ जाता है
--अज्ञात


कर रहा था गम-ए-जहां का हिसाब
आज तुम याद बेहिसाब आये
--फैज अहमद फैज


कईं दर्दों को अब दिल में जगह मिल जायेगी
वो गया कुछ जगह खाली इतनी छोड़ कर
--अज्ञात

माना के हर एक की जिंदगी में गम आते हैं मगर
जितने गम मुझे मिले उतनी मेरी उम्र न थी.
--अज्ञात


अफवाह किसी ने फैलाई थी तेरे शहर में होने की,
मैं हर एक दर पर मुकद्दर आज़माता रहा..
--अज्ञात


कभी चाहत भरे दिन रात अच्छे नही लगते
कभी अच्छे तालुकात भी अच्छे नही लगते
कभी दिल चाहता है उसकी मूठी में धडकना
कभी हाथो में उसके हाथ भी अच्छे नही लगते
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मेरी दास्तान-ए-हसरत वो सुना सुना के रोये
मेरे आजमाने वाले मुझे आजमा के रोये
कोई ऐसा अहल-ए-दिल हो के फ़साना-ए-मोहब्बत
मैं उसे सुना के रोऊँ, वो मुझे सुना के रोये
मेरे पास से गुजार कर मेरा हाल तक न पूछा
मैं ये कैसे मान जाऊं के वो दूर जा के रोये
--अहमद फराज़


तेरे क़रीब वो देखा नहीं गया
वो ले गया तुझे,रोका नहीं गया
यादें उभर गईं,बातें निखर गईं
मैं रात भर जगा ,सोया नहीं गया
तुझसे बिछुड़ गए ,फिर भी जुड़े रहे
तेरे ख़याल को तोडा नहीं गया
कितने बरस हुए , तेरी खबर नहीं
तेरे सिवाय कुछ ,सोचा नहीं गया
हर मोड़ पर मिले ,कितने हँसीन रंग
फिर भी कभी ये दिल, मोड़ा नहीं गया
कुछ साल एक दम, आकर खड़े हुए
ख़त देख तो लिया ,खोला नहीं गया
आसान था जिसे , कहना बहुत तुझे
वो ढाई लफ्ज़ भी , बोला नहीं गया
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खैरात मैं मिली ख़ुशी मुझे अच्छी नहीं लगती ..
मैं अपने ग़ममें रहता हूँ नवाबो की तरह !!

3 Jan 2011

बहुत पानी बरसता है

बहुत पानी बरसता है तो मिट्टी बैठ जाती है
न रोया कर बहुत रोने से छाती बैठ जाती है

यही मौसम था जब नंगे बदन छत पर टहलते थे
यही मौसम है अब सीने में सर्दी बैठ जाती है

चलो माना कि शहनाई मोहब्बत की निशानी है
मगर वो शख्स जिसकी आ के बेटी बैठ जाती है

बढ़े बूढ़े कुएँ में नेकियाँ क्यों फेंक आते हैं ?
कुएं में छुप के क्यों आखिर ये नेकी बैठ जाती है ?

नक़ाब उलटे हुए गुलशन से वो जब भी गुज़रता है
समझ के फूल उसके लब पे तितली बैठ जाती है

सियासत नफ़रतों का ज़ख्म भरने ही नहीं देती
जहाँ भरने पे आता है तो मक्खी बैठ जाती है

वो दुश्मन ही सही आवाज़ दे उसको मोहब्बत से
सलीक़े से बिठा कर देख हड्डी बैठ जाती है
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