5 Aug 2013

अशआर, Ashaar

कोई पूछ रहा है मुझसे मेरी ज़िन्दगी की कीमत
मुझे याद आ रहा है तेरा वो हल्का सा मुस्कुराना


मुझ पर सितम ढा गये मेरी ग़ज़ल के शेर,
पढ़ पढ़ के खो रहे हैं वो किसी और के ख्याल में
--मरीज़

कमबख्त मानता ही नहीं दिल उसे भूलने को
मैं हाथ जोड़ता हूँ तो ये पांव पड़ जाता है

--अज्ञात 

वही ज़बान, वही बातें मगर है कितना फरक
तेरे नाम से पहले और तेरे नाम के बाद
--अज्ञात


कितना इख्तियार था उसको अपनी इस चाहत पे "अजनबी"
इस लिए जब चाहा याद किया, जब चाहा भुला दिया

--अजनबी एक गुमनाम शायर 


दिल लगी में वक़्त-ए -तन्हाई ऐसा भी आता है
कि रात चली जाती है मगर अँधेरे नहीं जाते

--अज्ञात

जाते हुए उसने सिर्फ इतना कहा था मुझसे
ओ पागल ... अपनी ज़िंदगी जी लेना, वैसे प्यार अच्छा करते हो

--अज्ञात 
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