19 Dec 2013

तो क्या जाता ....

दो अश्क मेरी याद में बहा जाते तो क्या जाता ,
चंद कलियाँ लाश पर बिछा जाते तो क्या जाता !

आये हो मय्यत पर सनम ओढ़ कर नकाब तुम ,
अगर ये चाँद का टुकड़ा दिखा जाते तो क्या जाता !

पूछते थे लोग तुमसे किसका है जनाज़ा यह ,
मरने वाला कौन था बता जाते तो क्या जाता !

सबके सामने मेरी उल्फत को रुसवा कर दिया
नज़र की तल्खीयां ,छुपा जाते तो क्या जाता !

हर ज़ख्म ने मेरे तुम्हे दी हैं दुआएं उम्र भर ,
हाय , इक बार सीने से लगा जाते तो क्या जाता !

तुमको याद करते -करते जान दे दी ,,,,
इक्क चिराग ही मज़ार पर जला जाते तो क्या जाता !!,,

10 Nov 2013

दर्द बढ कर फुगाँ ना हो जाये / जिगर मुरादाबादी

दर्द बढ़ कर फुगाँ1 ना हो जाये
ये ज़मीं2 आसमाँ3 ना हो जाये

दिल में डूबा हुआ जो नश्तर4 है
मेरे दिल की ज़ुबाँ5 ना हो जाये

दिल को ले लीजिए जो लेना हो
फिर ये सौदा6 गराँ7 ना हो जाये

आह8 कीजिए मगर लतीफ़-तरीन9
लब तक आकर धुआँ ना हो जाये
1 फुगाँ: विलाप;
2 ज़मीं: पृथ्वी;
3 आसमाँ: आकाश
  4 नश्तर: चाकू;
  5 ज़ुबाँ: आवाज
  6 सौदा: सौदा;
  7 गराँ: महंगा
  8 आह: आह;
  9 लतीफ़ - तरीन: सुखद;

30 Sept 2013

दयार-ए-दिल की रात में

दयार-ए-दिल की रात में चिराग़ सा जला गया
मिला नहीं तो क्या हुआ वो शक़्ल तो दिखा गया



जुदाइयों के ज़ख़्म दर्द-ए-ज़िंदगी ने भर दिये
तुझे भी नींद आ गई मुझे भी सब्र आ गया

दिल धड़कने का सबब याद आया

दिल धड़कने का सबब याद आया
वो तेरी याद थी अब याद आया

आज मुश्किल था सम्भलना ऐ दोस्त
तू मुसीबत में अजब याद आया

दिन गुज़ारा था बड़ी मुश्किल से
फिर तेरा वादा-ए-शब याद आया

तेरा भूला हुआ पैमान-ए-वफ़ा
मर रहेंगे अगर अब याद आया

फिर कई लोग नज़र से गुज़रे
फिर कोई शहर-ए-तरब याद आया

हाल-ए-दिल हम भी सुनाते लेकिन
जब वो रुख़सत हुए तब याद आया

बैठ कर साया-ए-गुल में "नासिर"
हम बहुत रोये वो जब याद आया

5 Aug 2013

अशआर, Ashaar

कोई पूछ रहा है मुझसे मेरी ज़िन्दगी की कीमत
मुझे याद आ रहा है तेरा वो हल्का सा मुस्कुराना


मुझ पर सितम ढा गये मेरी ग़ज़ल के शेर,
पढ़ पढ़ के खो रहे हैं वो किसी और के ख्याल में
--मरीज़

कमबख्त मानता ही नहीं दिल उसे भूलने को
मैं हाथ जोड़ता हूँ तो ये पांव पड़ जाता है

--अज्ञात 

वही ज़बान, वही बातें मगर है कितना फरक
तेरे नाम से पहले और तेरे नाम के बाद
--अज्ञात


कितना इख्तियार था उसको अपनी इस चाहत पे "अजनबी"
इस लिए जब चाहा याद किया, जब चाहा भुला दिया

--अजनबी एक गुमनाम शायर 


दिल लगी में वक़्त-ए -तन्हाई ऐसा भी आता है
कि रात चली जाती है मगर अँधेरे नहीं जाते

--अज्ञात

जाते हुए उसने सिर्फ इतना कहा था मुझसे
ओ पागल ... अपनी ज़िंदगी जी लेना, वैसे प्यार अच्छा करते हो

--अज्ञात 

28 Jul 2013

लुत्फ़ हम को आता है अब फ़रेब खाने में / आलम खुर्शीद

लुत्फ़ हम को आता है अब फ़रेब खाने में
आज़माए लोगों को रोज़ आज़माने में

दो घड़ी के साथी को हमसफ़र समझते हैं
किस क़दर पुराने हैं , हम नए ज़माने में

एहतियात रखने की कोई हद भी होती है
भेद हम ने खोले हैं , भेद को छुपाने में

तेरे पास आने में आधी उम्र गुजरी है
आधी उम्र गुज़रेगी तुझ से दूर जाने में

ज़िन्दगी तमाशा है और इस तमाशे में
खेल हम बिगाड़ेंगे , खेल को बनाने में

कारवां को उनका भी कुछ ख्याल आता है
जो सफ़र में पिछड़े हैं , रास्ता बनाने में

हमेशा दिल में रहता है कभी गोया नहीं जाता

हमेशा दिल में रहता है, कभी गोया (बताया) नहीं जाता
जिसे पाया नहीं जाता, उसे खोया नहीं जाता

कुछ ऐसे ज़ख्म हैं जिनको सभी शादाब(हराभरा) रखते हैं
कुछ ऐसे दाग़ हैं जिनको कभी धोया नहीं जाता

बहुत हँसने कि आदत का यही अंजाम होता है
कि हम रोना भी चाहें तो कभी रोया नहीं जाता

अजब सी गूँज उठती है दरो-दीवार से हरदम
ये उजड़े ख़्वाब का घर है यहाँ सोया नहीं जाता

ज़रा सोचो ये दुनिया किस क़दर बेरंग हो जाती
अगर आँखों में कोई ख़्वाब ही बोया नहीं जाता

न जाने अब मुहब्बत पर मुसीबत क्या पड़ी आलम
कि अहले दिल से दिल का बोझ भी ढोया नहीं जाता


 ---आलम खुर्शीद

27 Apr 2013

ashar

1.kash k wo lout aaye mujh se ye kehne
k tum kon hote ho mujh se bicharne wale

2.zakham khareed laya hoon bazar-e-dard se
dil zid kar raha tha mujhe mohabbat chahiye

3.Suna Hai Ishq Se Teri Bohat Banti Hai
Ek Ehsan Kar Us Say  Pooch Qasoor  Mera

4. Dekhta Hoon Tasveer-e-Yaar To Aata Hai Rashk
Her Baat La-Jawaab Thi Agar Bewafa Na Hota

5. Wo Kehta Hai Bata Tera Dard Kaise Samjhoon
Main ne Kaha Ishq Kar Bohat Kar Aur Kar K Haar Jaa

6Chod ye baat milay zakham kahan se mujhko
Zindagi itna bata kitna safar baqi hai

7Aaj usne aik aur dard dia to yaad aaya
Humne bhi to duaaon mein uske dard maangay thay
 

डूब गया एतबार करते हुए

तेरे फिराक के लम्हे शुमार करते हुए
बिखर गए है तेरा इंतज़ार करते हुए

मैं भी खुश हु कोई उससे जा के कह दे,
अगर वो खुश है मुझसे बेक़रार करते हुए

मैं मुस्कुराता हुआ आईने में उभरूँगा,
वो पड़ेगा अचानक सिंगार करते हुए

तुझे खबर ही नहीं टूट गया है कोई
मोहब्बत को बोहत पाईदार करते हुए

वो कह रही थी समंदर नही है आंखो में
मैं उन में डूब गया एतबार करते हुए

15 Apr 2013

मय साकी रिन्द मयखाना और वाइज

1.उनको खबर है मेरे टूटे अरमानों की
आज जरूरत पड़ेगी काँच के पैमानों की
खाली न होने देना जाम यारों
वरना  फिर से याद आ जाएगी गुजरे जमाने की !

2. हम अच्छे सही पर लोग ख़राब कहतें हैं;
इस देश का बिगड़ा हुआ हमें नवाब कहते हैं;
हम ऐसे बदनाम हुए इस शहर में;
कि पानी भी पिये तो लोग उसे शराब कहते हैं!

3 . रहे न रिन्द ये वाइज के बस की बात नहीँ।
तमाम शहर है दो चार दस की बात नहीँ॥
रिन्द=शराबी
वाइज=धर्मगुरू

4 गर बाजुओँ मेँ दम है तो मस्जिद को हिला कर देख।
नहीँ तो साथ बेठ दो घूँट पी और मस्जिद को हिलता देख॥

अज्ञात

5 चश्म - ए - साकी की एक बूंद को तरसा है दिल ,
आज जी भर के मेरे यार मुझको पीने दे ,
अपनी तन्हाईयों से तंग रहा हूँ मैं अब तक ,
अपने पहलू मे अब तो यार मुझको जीने दे ,
बड़ा बेदर्द था दर्द सुनी सुनी रातों का ,
सीने चाक जख्मों को तू आज तो सीने दे ,
भूल आया हूँ आज राह मैं मयखाने की ,
अपनी नजरों के ही दो जाम मुझको पीन दे

6 गम इस कदर मिला की घबरा के पी आए ,
खुशी थोड़ी सी मिली तो मिला के पी आए ,
यूं तो न थी जन्म से पीने की आदत ,
शराब को तन्हा देखा तो तरस खा कर पी आए

7 मस्जिद मेँ बुलाते हैँ हमेँ ज़ाहिदे-नाफहम।
होता कुछ अगर होश तो मयख़ाने न जाते

11 Apr 2013

अशआर


1.      वहां  से  एक  पानी  की  बूँद    निकल  सकी  ,
तमाम  उम्र  जिन  आँखों  को  हम  झील  लिखते  रहे

2.      कल  मिला  वक़्त  तो  जुल्फें  तेरी  सुलझाउंगा  , आज  उलझा  हूँ  ज़रा  वक़्त  को  सुलझाने  में ..!!

3.      वो  कहते   हैं  की  अगर  नसीब  होगा  मेरा  तो  हम  उन्हें  ज़रूर  पाएंगे ,
हम  पूछते  हैं  उनसे  अगर  हम  बदनसीब  हुए  तो .. उनके  बिना  कैसे  जी  पाएंगे

4.      मैं चाहता था ख़ुद से मुलाक़ात हो मगर आईने मेरे क़द के बराबर नही मिले

5.      मैं उसका हो नहीं सकता बता न देना उसे, सुनेगा तो लकीरें हाथ की अपनी वो सब जला लेगा
हज़ार तोड़ के आ जाऊं उस से रिश्ता मैं जानता हूँ वो जब चाहेगा बुला लेगा !!!!

6.      दुनिया  में  और  भी  वजह  होती  है  दिल  के  टूट  जाने  की
लोग  युही  मोहब्बत  को  बदनाम  किया  करते  है  !!

7.      वो  एक  ख़त , जो  उस  ने  कभी  लिखा  ही  नहीं
में  रोज्ज़  बैठ  कर  , उस  का  जवाब  लिखता  हूँ ..

8.      मुझ  से  कहती  है  तेरे  साथ  रहूँगी  सदा 
बहोत  प्यार   करती  है  मुझसे  उदासी  मेरी

9.      कोई  तो  मोल  लगाए  मेरी  हस्ती  का  
किसी  की  आँख  के  आंसू  खरीदने  हैं  मुझे


10.  जान  दे  देंगे  ये  हमारे  बस  मैं  है ,
हम  नहीं  करते  बात  सितारे  तोड़  लाने  की


11.  मैं  बद -दुआ  तो  नहीं  देता   उसको   मगर दुआ  यही  है  ,उसे  मुझ  सा    मिले  कोई 



12.  मुलाकाते  जरूरी  है  अगर  रिश्ते  बचाने  है ,
लगा  कर  भूल  जाने  से  तो  पौधे  भी  सुख  जाते  है

13.  तेज़  रफ़्तार  ज़िन्दगी  का  ये  आलम  है  के ,
 सुबह  के  गम  शाम  को  पुराने  हो  जाते  हैं

14.  कुछ इसलिये भी तुम से मोहब्बत है
मेरा तो कोई नहीं है तुम्हारा तो कोई हो

15.  मैं चाहता हूँ फिर से वो दिन पलट आयें
कि माँ के चुल्लू को मेरा गिलास होना पड़े

16.  माँ के सामने कभी खुलकर नहीं रोना,
जहाँ बुनियाद हो, इतनी नमी अच्छी नहीं होती

17.  आंखें हैं कि उन्हें घर से निकलने नहीं देती
आंसू हैं कि सामान-ए-सफर बांधे हुए हैं

होटों पर हँसी

कभी होती थी तनहाइयों में भी मेरे होटों पर हँसी,
आज महफिलों में भी मुझे दर्द-ऐ-दिल हुआ करता है.
मेरे जीने की आरजू करते थे मेरे दुश्मन भी कभी,
आज मेरा हमदर्द भी मेरी रुक्सती की दुआ करता है.

समझता था ख़ुद को खुशनसीब जिसे मेरे दिल में पनाह मिलती थी,
आज अश्क भी मेरी आंखों में ख़ुद को यतीम समझता है.
खूबसूरत होता था हर वो कलाम जो मैं कलम से लिकता था,
आज लहू से लिखा "एहसास" भी ख़ुद को अल्फाज़ समझता है.

कभी जीता था मेरा कातिल भी मेरी आशिकुई की उम्मीद में,
आज मेरा दिल भी मेरी ज़िन्दगी के लिए कहाँ धड़कता है.
क्या होती है बेवफाई ये तो कभी मालूम न था,
आज ज़र्रा ज़र्रा मेरा मोहब्बत के लिए तड़पता है.

16 Mar 2013

आदते

तुमको क्या चाह हमारी सारी चाहते बदल गयी!!

अच्छी थी या बुरी पता नहीं  सारी आदते बदल गयी!!

क्या सोचा था की चाहेंगे किसी को अपने से ज्यादा!!

जो मशहूर थी हमारे लिए वो सारी  कहावते  बदल गयी!!

ये मोहब्बत भी है क्या रोग



ये मोहब्बत भी है क्या रोग ‘फ़राज़’
जिसको भूले वो सदा याद आया।

बहुत उदास है इक शख़्स तेरे जाने से
जो हो सके तो चला आ उसी की ख़ातिर तू

आ के अब तस्लीम कर लें तू नहीं तो मैं सही
कौन मानेगा के हम में बेवफ़ा कोई नहीं

ख़ुद को यूँ महसूर कर बैठा हूँ अपनी ज़ात में
मंज़िलें चारों तरफ़ है रास्ता कोई नहीं

फटी-फटी हुई आँखों से यूँ न देख मुझे
तुझे तलाश है जिस की वो शख़्स मर भी गया

सुना है बोलें तो बातों से फूल झड़ते हैं
ये बात है तो चलो बात करके देखते हैं

उसकी वो जाने उसे पासे-वफ़ा था कि न था
तुम फ़राज़ अपनी तरफ़ से तो निभाते जाते।

रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ

यही कहा था मेरे हाथ में है आईना
तो मुझपे टूट पड़ा सारा शहर नाबीना

कितने नादान हैं तेरे भूलने वाले के तुझे
याद करने के लिये उम्र पड़ी हो जैसे

कहा था किसने के अहद-ए-वफ़ा करो उससे
जो यूँ किया है तो फिर क्यूँ गिला करो उससे

8 Mar 2013

मंज़िलें चारों तरफ़ है रास्ता कोई नहीं - अहमद फ़राज़


ये मोहब्बत भी है क्या रोग ‘फ़राज़’
जिसको भूले वो सदा याद आया।

बहुत उदास है इक शख़्स तेरे जाने से
जो हो सके तो चला आ उसी की ख़ातिर तू

आ के अब तस्लीम कर लें तू नहीं तो मैं सही
कौन मानेगा के हम में बेवफ़ा कोई नहीं

ख़ुद को यूँ महसूर कर बैठा हूँ अपनी ज़ात में
मंज़िलें चारों तरफ़ है रास्ता कोई नहीं

फटी-फटी हुई आँखों से यूँ न देख मुझे
तुझे तलाश है जिस की वो शख़्स मर भी गया

सुना है बोलें तो बातों से फूल झड़ते हैं
ये बात है तो चलो बात करके देखते हैं

उसकी वो जाने उसे पासे-वफ़ा था कि न था
तुम फ़राज़ अपनी तरफ़ से तो निभाते जाते।

रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ

यही कहा था मेरे हाथ में है आईना
तो मुझपे टूट पड़ा सारा शहर नाबीना

कितने नादान हैं तेरे भूलने वाले के तुझे
याद करने के लिये उम्र पड़ी हो जैसे

कहा था किसने के अहद-ए-वफ़ा करो उससे
जो यूँ किया है तो फिर क्यूँ गिला करो उससे

मंज़िलें चारों तरफ़ है रास्ता कोई नहीं - अहमद फ़राज़


ये मोहब्बत भी है क्या रोग ‘फ़राज़’
जिसको भूले वो सदा याद आया।

बहुत उदास है इक शख़्स तेरे जाने से
जो हो सके तो चला आ उसी की ख़ातिर तू

आ के अब तस्लीम कर लें तू नहीं तो मैं सही
कौन मानेगा के हम में बेवफ़ा कोई नहीं

ख़ुद को यूँ महसूर कर बैठा हूँ अपनी ज़ात में
मंज़िलें चारों तरफ़ है रास्ता कोई नहीं

फटी-फटी हुई आँखों से यूँ न देख मुझे
तुझे तलाश है जिस की वो शख़्स मर भी गया

सुना है बोलें तो बातों से फूल झड़ते हैं
ये बात है तो चलो बात करके देखते हैं

उसकी वो जाने उसे पासे-वफ़ा था कि न था
तुम फ़राज़ अपनी तरफ़ से तो निभाते जाते।

रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ

यही कहा था मेरे हाथ में है आईना
तो मुझपे टूट पड़ा सारा शहर नाबीना

कितने नादान हैं तेरे भूलने वाले के तुझे
याद करने के लिये उम्र पड़ी हो जैसे

कहा था किसने के अहद-ए-वफ़ा करो उससे
जो यूँ किया है तो फिर क्यूँ गिला करो उससे

मंज़िलें चारों तरफ़ है रास्ता कोई नहीं - अहमद फ़राज़


ये मोहब्बत भी है क्या रोग ‘फ़राज़’
जिसको भूले वो सदा याद आया।

बहुत उदास है इक शख़्स तेरे जाने से
जो हो सके तो चला आ उसी की ख़ातिर तू

आ के अब तस्लीम कर लें तू नहीं तो मैं सही
कौन मानेगा के हम में बेवफ़ा कोई नहीं

ख़ुद को यूँ महसूर कर बैठा हूँ अपनी ज़ात में
मंज़िलें चारों तरफ़ है रास्ता कोई नहीं

फटी-फटी हुई आँखों से यूँ न देख मुझे
तुझे तलाश है जिस की वो शख़्स मर भी गया

सुना है बोलें तो बातों से फूल झड़ते हैं
ये बात है तो चलो बात करके देखते हैं

उसकी वो जाने उसे पासे-वफ़ा था कि न था
तुम फ़राज़ अपनी तरफ़ से तो निभाते जाते।

रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ

यही कहा था मेरे हाथ में है आईना
तो मुझपे टूट पड़ा सारा शहर नाबीना

कितने नादान हैं तेरे भूलने वाले के तुझे
याद करने के लिये उम्र पड़ी हो जैसे

कहा था किसने के अहद-ए-वफ़ा करो उससे
जो यूँ किया है तो फिर क्यूँ गिला करो उससे

मंज़िलें चारों तरफ़ है रास्ता कोई नहीं - अहमद फ़राज़


ये मोहब्बत भी है क्या रोग ‘फ़राज़’
जिसको भूले वो सदा याद आया।

बहुत उदास है इक शख़्स तेरे जाने से
जो हो सके तो चला आ उसी की ख़ातिर तू

आ के अब तस्लीम कर लें तू नहीं तो मैं सही
कौन मानेगा के हम में बेवफ़ा कोई नहीं

ख़ुद को यूँ महसूर कर बैठा हूँ अपनी ज़ात में
मंज़िलें चारों तरफ़ है रास्ता कोई नहीं

फटी-फटी हुई आँखों से यूँ न देख मुझे
तुझे तलाश है जिस की वो शख़्स मर भी गया

सुना है बोलें तो बातों से फूल झड़ते हैं
ये बात है तो चलो बात करके देखते हैं

उसकी वो जाने उसे पासे-वफ़ा था कि न था
तुम फ़राज़ अपनी तरफ़ से तो निभाते जाते।

रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ

यही कहा था मेरे हाथ में है आईना
तो मुझपे टूट पड़ा सारा शहर नाबीना

कितने नादान हैं तेरे भूलने वाले के तुझे
याद करने के लिये उम्र पड़ी हो जैसे

कहा था किसने के अहद-ए-वफ़ा करो उससे
जो यूँ किया है तो फिर क्यूँ गिला करो उससे

हार जाने का हौसला है मुझे- अहमद फ़राज़

ज़िन्दगी से यही गिला है मुझे
तू बहुत देर से मिला है मुझे
हमसफ़र चाहिये हूज़ूम नहीं
इक मुसाफ़िर भी काफ़िला है मुझे
तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल
हार जाने का हौसला है मुझे
लब कुशां हूं तो इस यकीन के साथ
कत्ल होने का हौसला है मुझे
दिल धडकता नहीं सुलगता है
वो जो ख्वाहिश थी, आबला है मुझे
कौन जाने कि चाहतो में फ़राज़
क्या गंवाया है क्या मिला है मुझे
ज़िन्दगी से यही गिला है मुझे
तू बहुत देर से मिला है मुझे
हमसफ़र चाहिये हूज़ूम नहीं
इक मुसाफ़िर भी काफ़िला है मुझे
तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल
हार जाने का हौसला है मुझे
लब कुशां हूं तो इस यकीन के साथ
कत्ल होने का हौसला है मुझे
दिल धडकता नहीं सुलगता है
वो जो ख्वाहिश थी, आबला है मुझे
कौन जाने कि चाहतो में फ़राज़
क्या गंवाया है क्या मिला है मुझे

31 Jan 2013

इंतज़ार.... wait...

रूह छोड़ क़दमों में तेरे
बेजान जिस्म लिए जा रहा  हूँ
जीना क्या है
बस तेरे इंतज़ार का बहाना है
वक़्त की सूई में
उम्मीद के धागे से
मोहब्बत के ज़ख्म सिये जा रहा  हूँ..........

वो रोये तो बहुत















वो रोये  तो बहुत पर मुझसे मुह मोड के रोये  ...
कोई   मजबूरी रही होगी जो दिल तोड़ के रोये
मेरे सामने कर दिये मेरी तस्वीर के हज़ार टुकड़े
 पता लगा मेरे पीछे वो उन्हे जोड़ के रोये !
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हो सकता है ये उसकी जिंदगी की सच्चाई हो
तोड़ दिया हो दिल मगर बाद में पछताई हो
आखिर ये सिलसिला कब तक चल पाएगा
जिस्म का हिस्सा दूसरे के बिना कब ताज रह पाएगा

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क्या लेकर आया था क्या लेकर जाएगा
हुमसे दूर रह कर आपका दिल कब तक रह  पाएगा
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2. बातों-बातों में बिछडने का इशारा करके
खुद भी रोये वो बहुत हमसे किनारा करके  !
जगमगा दी हैं तेरे शहर की गलियाँ हमने
अपने हर अश्‍क को पलकों का सितारा करके !
देख लेते हैं चलो हौसला अपने दिल का
और कुछ दिन तेरे बगैर गुजारा करके !!
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