4 Jun 2011

फितरत बदलती जिंदगी

मत देख कि कोई शख्श गुनाहगार कितना है.


यह देख कि तेरे साथ वफादार कितना है.

ये मत सोच कि उसे कुछ लोगों से नफ़रत भी है.

यह देख कि उसको तुझसे प्यार कितना है.


मत देख कि वो तनहा क्यूँ बैठता है इतना.


ये देख कि उसे तेरा इन्तिज़ार कितना है.


ये मत पूछ उसको तुझसे प्यार कितना है.


उसको ये बता कि वो तेरा हक़दार कितना है.

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हर मुश्किल इम्तिहान नहीं होती.


मोहब्बत खामोश रहती है, बेजुबान नहीं होती.


एक एक कदम पर फितरत बदलती है जिंदगी.


जब हमको मंजिलों की पहचान नहीं होती.

मै खुद को फरिश्ता नही कहता

दरिया तो है वो, जिस से किनारे छलक उठाये
बहते हुए पानी को मै दरिया नही कहता
गहराई जो दी तुने मेरे ज़ख्म ए जिगर को
मै इतना समुंद्र को भी गहरा नही कहता
किस किस की तम्मना मे करू प्यार को तक़सीम
हर शक़स को मै जान ए तम्मना नही कहता
करता हूँ मै, अपने गुनाहो पे बहुत नाज़
इंसान हूँ मै खुद को फरिश्ता नही कहता

हम जवाब क्या देते

पत्थर की है दुनियाँ जज़्बात नही समझती
दिल मे क्या है वो बात नही समझती
तन्हा तो चाँद भी है सितारो के बीच
मगर चाँद का दर्द बेवफा रात नही समझती
हम दर्द झेलने से नही डरते
पर उस दर्द के खत्म होने की कोई आस तो हो
दर्द चाहे कितना भी दर्दनाक हो
पर दर्द देने वाले को उसका एहसास तो हो
उनको अपने हाल का हिसाब क्या देते
सवाल सारे गलत थे हम जवाब क्या देते
वो तो लफ्ज़ो की हिफाज़त भी ना कर सके
फिर उनके हाथ मे ज़िन्दगी की पुरी किताब क्या देते

रस्म-ए-वफा

दर्द-ए-दिल की कहानी भी वो खुब लिखता है


कही पर बेवफा तो कही मुझे मेहबूब लिखता है

कुछ तो रस्म-ए-वफा निभा रहा है वो

हर एक सफ-ए-कहानी मे वो मुझे मजमून लिखता है

लफ्ज़ो की जुस्तजू मेरे संग़ बीते लम्हो से लेता है

स्याही मेरे अश्क़ को बनाकर वो हर लम्हा लिखता है

कशिश क्यो ना हो उसकी दास्तान-ए-दर्द मे यारो

जब भी ज़िक्र खुद का आता है वो खुद को वफा लिखता है

तहरीरे झूठ की सजाई है आज उसने अपने चेहरे पर

खुद को दर्द की मिसाल और कही मजबूर लिखता है

1 Jun 2011

ढूंढ़ता तन्हाइयों को इक खुले आकाश में|

ढूंढ़ता तन्हाइयों को,
इक खुले आकाश में|
देखता परछाइओं को,
मौत की तलाश में|

आसमां भी रो पड़ा,
ये सोच तनहा है सफ़र|
एक टक वो देखता,
आए कहीं कोई नज़र|
देरों तलक निहारता,
शायद किसी की आस में|
ढूंढ़ता तन्हाइयों को,
इक खुले आकाश में|

चाँद-तारे सब के सब,
जानते हर बात को|
देखा है सबने साथ ही,
आसमां की बरसात को|
भींगतें हैं वो सभी,
रह आसमां के पास में|
ढूंढ़ता तन्हाइयों को,
इक खुले आकाश में|

चातक को है क्या पड़ा?
स्वाति की इक बूंद का|
चकोर भी है बावड़ा,
चाँद की इक धुन्द का|
जाने क्यूँ परेशां हैं सब?
गुमनाम-से इक प्यास में|
ढूंढ़ता तन्हाइयों को,
इक खुले आकाश में|

बुझती चिराग अब,
जोर है तूफान का|
टूटती दिवार अब,
हर पक्के मकान|
पत्थरों में देख करुणा,
जाने जीतें हैं क्यूँ विश्वास में?
ढूंढ़ता तन्हाइयों को,
इक खुले आकाश में|

ऐ दिल तूँ सुन यूँ ना मचल,
ये असर है उनके साथ का|
वादा किया करतें हैं वो,
क्या भरोसा बात का?
तूँ गुम है इतना क्यूँ भला?
दो पल के एहसास में|
ढूंढ़ता तन्हाइयों को,
इक खुले आकाश में|

ज़िंदगी है छोटी, हर पल में ख़ुश रहो

ज़िंदगी है छोटी, हर पल में ख़ुश रहो...
Office मे ख़ुश रहो, घर में ख़ुश रहो...
आज पनीर नही है दाल में ही ख़ुश रहो...
आज gym जाने का समय नही, दो क़दम चल के ही ख़ुश रहो...
आज दोस्तो का साथ नही, TV देख के ही ख़ुश रहो...
घर जा नही सकते तो फ़ोन कर के ही ख़ुश रहो...
आज कोई नाराज़ है उसके इस अंदाज़ में भी ख़ुश रहो...
जिसे देख नही सकते उसकी आवाज़ में ही ख़ुश रहो...
जिसे पा नही सकते उसकी याद में ही ख़ुश रहो
Laptop ना मिला तो क्या, Desktop में ही ख़ुश रहो...
बीता हुआ कल जा चुका है उसकी मीठी यादें है उनमे ही ख़ुश रहो...
आने वाले पल का पता नही... सपनो में ही ख़ुश रहो...
हसते हसते ये पल बिताएँगे, आज में ही ख़ुश रहो
ज़िंदगी है छोटी, हर पल में ख़ुश रहो
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