यांदे संभाली है इस दिल में... सुना इस दुनिया में सब बिकता है... अफसोस मुझे इनका कोई का खरीददार न मिला
22 Dec 2010
मेरी ख़्वाहिश है कि फिर से मैं फ़रिश्ता हो जाऊं
माँ से इस तरह लिपट जाऊं कि बच्चा हो जाऊं
कम-से कम बच्चों के होठों की हंसी की ख़ातिर
ऎसी मिट्टी में मिलाना कि खिलौना हो जाऊं
सोचता हूं तो छलक उठती हैं मेरी आँखें
तेरे बारे में न सॊचूं तो अकेला हो जाऊं
चारागर तेरी महारथ पे यक़ीं है लेकिन
क्या ज़ुरूरी है कि हर बार मैं अच्छा हो जाऊं
बेसबब इश्क़ में मरना मुझे मंज़ूर नहीं
शमा तो चाह रही है कि पतंगा हो जाऊं
शायरी कुछ भी हो रुसवा नहीं होने देती
मैं सियासत में चला जाऊं तो नंगा हो जाऊं
मिलना था इत्तफाक, बिछड़ना नसीब था
वो फिर उतनी दूर हो गया, जितना करीब था
बस्ती के सारे लोग ही आतिस-परस्त थे
घर जल रहा था, और समंदर करीब था
अंजुम मैं जीत कर भी यही सोचती रही
जो हार कर गया, वो बड़ा खुशनसीब था
--अंजुम रहबर
राज़-ए-उल्फ़त
राज़-ए-उल्फ़त छुपा के देख लिया
दिल बहोत कुछ जला के देख लिया
और क्या देखने को बाक़ी है
आप से दिल लगा के देख लिया
वो मेरे हो के भी मेरे न हुए
उनको अपना बना के देख लिया
आज उनकी नज़र में कुछ हमने
सबकी नज़रें बचा के देख लिया
'फ़ैज़', तक़्मील-ए-ग़म भी हो न सकी
इश्क़ को आज़मा के देख लिया
आस उस दर से टूटती ही नहीं
जा के देखा, न जा के देख लिया
20 Dec 2010
बिखरे मोती
मुझ से मिल कर उसका उदास होना, मुझे अच्छा नहीं लगता
"हमको बहुत नाज़ था अपनी हँसी पर, खून के आंसू रुलाया ज़िन्दगी ने"
"उसे ये शिकवा के मैं उसे समझ न सका
और मुझे ये नाज़ के मैं जानता बस उसको था "
"थक सा गया है मेरी चाहतों का वजूद,
अब कोई अच्छा भी लगे तो हम इज़हार नहीं करते"
- अज्ञात
"मुझको हँसते हुए इस दुनिया से रुखसत कीजे, कोई रोता है भला जब कोई घर जाता है - मुनव्वर राना"
"एक वो जो मोहब्बत का सिला देता है
ये ज़माना ही वफाओं की सज़ा देता है
वो भी आंसू है जो आग बुझाए दिल की
ये भी आंसू जो दामन जो जला देता है"
"मै मुद्दतों जिया हू किसी दोस्त के बग़ैर
अब तुम भी साथ छोडने को कह रहे हो ख़ैर्..."
"इस बात का रोना नही क्यू तुमने किया दिल बर्बाद किया
इसका गम है के बहुत देर में बर्बाद किया....."
"अब ये भी नही ठीक के हर दर्द मिटा दें
कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिये हैं...
"मैंने तो उस रात से आँखे ही नही खोली जिस रात उसने कहा था के सुबह होते ही भूल जाना मुझे ...
"तुम अगर बिखर जाओ
बेबसी में घिर जाओ
दिल से एक सदा देना
बस मुझे बुला लेना,
मैं तुम्हे संभल लूँगा
"ज़िन्दगी में चलने का ,रास्ता बदलने का
एक हुनर सिखा दूंगा
तुम को होसला दूंगा
और जब संभल जाओ
रौशनी में ढल जाओ
मुझ को ये सिला देना
"तुम मुझे भुला देना"
"वो इस अदा से झूठ कहा करती है
कि उसकी हर बात सच लगा करती है
मुझे मालूम है वो नाजनीन बेवफा है
एक तरफ़ा मोहब्बत यु ही हुआ करती है
"काश पास हमारे भी तुमसे तरीके होते
हमारी बातों में भी तुम्हारे से सलीके होते
तुम्हे पाकर भी तुम्हे शायद पा सकता
प्यार के कायदे भी कभी जो हमने सीखे होते
"कांच से कलाई पे मेरा नाम लिखती रही
मेरे नाम से सुर्ख लकीरें निकलती रही
मोहब्बत इतनी थी उसे मेरे नाम से
अपने ही हाथो से मोम सी वो पिघलती रही"
चाहत का ऐसा मज़ा,
तुम लोगों से कहते फिरोगे, मुझे चाहो उसकी तरह"
- अहमद फ़राज़
"उंगलियां आज भी इसी सोच में ग़ुम है फ़राज़
उसने कैसे नये हाथ को थामा होगा"
- अहमद फ़राज़
अशआर
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18 Dec 2010
उदास होने का कोई सबब नहीं होता
कभी कभी तो छलक पड़ती है यूँही आंखें
उदास होने का कोई सबब नहीं होता
ख़ूबसूरत उदास ख़ौफ़ज़दा
वो भी है बीसवीं सदी की तरह
बशीर बद्र
जब बिछडना भी तो हँसते हुये जाना
जब बिछडना भी तो हँसते हुये जाना वरना
हर कोई रूठ के जाने का सबब पूछेगा
बशीर बद्र
ये दुनिया है
ये दुनिया है यहाँ कोई जगह खाली नहीं रहती
किसी के आने जाने से कभी कुछ कम नहीं होता
बशीर बद्र
आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा
कश्ती के मुसाफ़िर ने समन्दर नहीं देखा
बेवक़्त अगर जाऊँगा सब चौंक पड़ेंगे
इक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा
जिस दिन से चला हूँ मिरी मंज़िल पे नज़र है
आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा
ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं ?
तुम ने मेरा कांटों भरा बिस्तर नहीं देखा ?
महबूब का घर हो या बुज़ुर्गों कि ज़मीन
जो छोड़ दिया फिर उसे मुड़ कर नहीं देखा
ख़त ऐसा लिखा है कि नगीने से जड़े हों
इन हाथों ने लेकिन कोई ज़ेवर नहीं देखा
वो मेरे मसाइल को समझ ही नहीं सका
जिस ने मेरी आंखों में समन्दर नहीं देखा
क़ातिल के तरफ़दार का कहना है कि उसने
मक़तूल की गर्दन पे कभी सर नहीं देखा
बशीर बद्र
ख़ुदा हमको ऐसी ख़ुदाई ना दे
ख़ुदा हमको ऐसी ख़ुदाई ना दे
कि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे
ख़ुदा ऐसे एहसास का नाम है
रहे सामने और दिखाई ना दे.
जिन बातों को ख़ुद नहीं समझे औरों को समझाया है
जिन बातों को ख़ुद नहीं समझे औरों को समझाया है"
बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो
चार किताबें पढ़कर ये भी हम जैसे हो जाएँगे"
निदा फ़ाज़्ली