15 Apr 2013

मय साकी रिन्द मयखाना और वाइज

1.उनको खबर है मेरे टूटे अरमानों की
आज जरूरत पड़ेगी काँच के पैमानों की
खाली न होने देना जाम यारों
वरना  फिर से याद आ जाएगी गुजरे जमाने की !

2. हम अच्छे सही पर लोग ख़राब कहतें हैं;
इस देश का बिगड़ा हुआ हमें नवाब कहते हैं;
हम ऐसे बदनाम हुए इस शहर में;
कि पानी भी पिये तो लोग उसे शराब कहते हैं!

3 . रहे न रिन्द ये वाइज के बस की बात नहीँ।
तमाम शहर है दो चार दस की बात नहीँ॥
रिन्द=शराबी
वाइज=धर्मगुरू

4 गर बाजुओँ मेँ दम है तो मस्जिद को हिला कर देख।
नहीँ तो साथ बेठ दो घूँट पी और मस्जिद को हिलता देख॥

अज्ञात

5 चश्म - ए - साकी की एक बूंद को तरसा है दिल ,
आज जी भर के मेरे यार मुझको पीने दे ,
अपनी तन्हाईयों से तंग रहा हूँ मैं अब तक ,
अपने पहलू मे अब तो यार मुझको जीने दे ,
बड़ा बेदर्द था दर्द सुनी सुनी रातों का ,
सीने चाक जख्मों को तू आज तो सीने दे ,
भूल आया हूँ आज राह मैं मयखाने की ,
अपनी नजरों के ही दो जाम मुझको पीन दे

6 गम इस कदर मिला की घबरा के पी आए ,
खुशी थोड़ी सी मिली तो मिला के पी आए ,
यूं तो न थी जन्म से पीने की आदत ,
शराब को तन्हा देखा तो तरस खा कर पी आए

7 मस्जिद मेँ बुलाते हैँ हमेँ ज़ाहिदे-नाफहम।
होता कुछ अगर होश तो मयख़ाने न जाते

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