11 Apr 2013

होटों पर हँसी

कभी होती थी तनहाइयों में भी मेरे होटों पर हँसी,
आज महफिलों में भी मुझे दर्द-ऐ-दिल हुआ करता है.
मेरे जीने की आरजू करते थे मेरे दुश्मन भी कभी,
आज मेरा हमदर्द भी मेरी रुक्सती की दुआ करता है.

समझता था ख़ुद को खुशनसीब जिसे मेरे दिल में पनाह मिलती थी,
आज अश्क भी मेरी आंखों में ख़ुद को यतीम समझता है.
खूबसूरत होता था हर वो कलाम जो मैं कलम से लिकता था,
आज लहू से लिखा "एहसास" भी ख़ुद को अल्फाज़ समझता है.

कभी जीता था मेरा कातिल भी मेरी आशिकुई की उम्मीद में,
आज मेरा दिल भी मेरी ज़िन्दगी के लिए कहाँ धड़कता है.
क्या होती है बेवफाई ये तो कभी मालूम न था,
आज ज़र्रा ज़र्रा मेरा मोहब्बत के लिए तड़पता है.

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