27 Apr 2013

ashar

1.kash k wo lout aaye mujh se ye kehne
k tum kon hote ho mujh se bicharne wale

2.zakham khareed laya hoon bazar-e-dard se
dil zid kar raha tha mujhe mohabbat chahiye

3.Suna Hai Ishq Se Teri Bohat Banti Hai
Ek Ehsan Kar Us Say  Pooch Qasoor  Mera

4. Dekhta Hoon Tasveer-e-Yaar To Aata Hai Rashk
Her Baat La-Jawaab Thi Agar Bewafa Na Hota

5. Wo Kehta Hai Bata Tera Dard Kaise Samjhoon
Main ne Kaha Ishq Kar Bohat Kar Aur Kar K Haar Jaa

6Chod ye baat milay zakham kahan se mujhko
Zindagi itna bata kitna safar baqi hai

7Aaj usne aik aur dard dia to yaad aaya
Humne bhi to duaaon mein uske dard maangay thay
 

डूब गया एतबार करते हुए

तेरे फिराक के लम्हे शुमार करते हुए
बिखर गए है तेरा इंतज़ार करते हुए

मैं भी खुश हु कोई उससे जा के कह दे,
अगर वो खुश है मुझसे बेक़रार करते हुए

मैं मुस्कुराता हुआ आईने में उभरूँगा,
वो पड़ेगा अचानक सिंगार करते हुए

तुझे खबर ही नहीं टूट गया है कोई
मोहब्बत को बोहत पाईदार करते हुए

वो कह रही थी समंदर नही है आंखो में
मैं उन में डूब गया एतबार करते हुए

15 Apr 2013

मय साकी रिन्द मयखाना और वाइज

1.उनको खबर है मेरे टूटे अरमानों की
आज जरूरत पड़ेगी काँच के पैमानों की
खाली न होने देना जाम यारों
वरना  फिर से याद आ जाएगी गुजरे जमाने की !

2. हम अच्छे सही पर लोग ख़राब कहतें हैं;
इस देश का बिगड़ा हुआ हमें नवाब कहते हैं;
हम ऐसे बदनाम हुए इस शहर में;
कि पानी भी पिये तो लोग उसे शराब कहते हैं!

3 . रहे न रिन्द ये वाइज के बस की बात नहीँ।
तमाम शहर है दो चार दस की बात नहीँ॥
रिन्द=शराबी
वाइज=धर्मगुरू

4 गर बाजुओँ मेँ दम है तो मस्जिद को हिला कर देख।
नहीँ तो साथ बेठ दो घूँट पी और मस्जिद को हिलता देख॥

अज्ञात

5 चश्म - ए - साकी की एक बूंद को तरसा है दिल ,
आज जी भर के मेरे यार मुझको पीने दे ,
अपनी तन्हाईयों से तंग रहा हूँ मैं अब तक ,
अपने पहलू मे अब तो यार मुझको जीने दे ,
बड़ा बेदर्द था दर्द सुनी सुनी रातों का ,
सीने चाक जख्मों को तू आज तो सीने दे ,
भूल आया हूँ आज राह मैं मयखाने की ,
अपनी नजरों के ही दो जाम मुझको पीन दे

6 गम इस कदर मिला की घबरा के पी आए ,
खुशी थोड़ी सी मिली तो मिला के पी आए ,
यूं तो न थी जन्म से पीने की आदत ,
शराब को तन्हा देखा तो तरस खा कर पी आए

7 मस्जिद मेँ बुलाते हैँ हमेँ ज़ाहिदे-नाफहम।
होता कुछ अगर होश तो मयख़ाने न जाते

11 Apr 2013

अशआर


1.      वहां  से  एक  पानी  की  बूँद    निकल  सकी  ,
तमाम  उम्र  जिन  आँखों  को  हम  झील  लिखते  रहे

2.      कल  मिला  वक़्त  तो  जुल्फें  तेरी  सुलझाउंगा  , आज  उलझा  हूँ  ज़रा  वक़्त  को  सुलझाने  में ..!!

3.      वो  कहते   हैं  की  अगर  नसीब  होगा  मेरा  तो  हम  उन्हें  ज़रूर  पाएंगे ,
हम  पूछते  हैं  उनसे  अगर  हम  बदनसीब  हुए  तो .. उनके  बिना  कैसे  जी  पाएंगे

4.      मैं चाहता था ख़ुद से मुलाक़ात हो मगर आईने मेरे क़द के बराबर नही मिले

5.      मैं उसका हो नहीं सकता बता न देना उसे, सुनेगा तो लकीरें हाथ की अपनी वो सब जला लेगा
हज़ार तोड़ के आ जाऊं उस से रिश्ता मैं जानता हूँ वो जब चाहेगा बुला लेगा !!!!

6.      दुनिया  में  और  भी  वजह  होती  है  दिल  के  टूट  जाने  की
लोग  युही  मोहब्बत  को  बदनाम  किया  करते  है  !!

7.      वो  एक  ख़त , जो  उस  ने  कभी  लिखा  ही  नहीं
में  रोज्ज़  बैठ  कर  , उस  का  जवाब  लिखता  हूँ ..

8.      मुझ  से  कहती  है  तेरे  साथ  रहूँगी  सदा 
बहोत  प्यार   करती  है  मुझसे  उदासी  मेरी

9.      कोई  तो  मोल  लगाए  मेरी  हस्ती  का  
किसी  की  आँख  के  आंसू  खरीदने  हैं  मुझे


10.  जान  दे  देंगे  ये  हमारे  बस  मैं  है ,
हम  नहीं  करते  बात  सितारे  तोड़  लाने  की


11.  मैं  बद -दुआ  तो  नहीं  देता   उसको   मगर दुआ  यही  है  ,उसे  मुझ  सा    मिले  कोई 



12.  मुलाकाते  जरूरी  है  अगर  रिश्ते  बचाने  है ,
लगा  कर  भूल  जाने  से  तो  पौधे  भी  सुख  जाते  है

13.  तेज़  रफ़्तार  ज़िन्दगी  का  ये  आलम  है  के ,
 सुबह  के  गम  शाम  को  पुराने  हो  जाते  हैं

14.  कुछ इसलिये भी तुम से मोहब्बत है
मेरा तो कोई नहीं है तुम्हारा तो कोई हो

15.  मैं चाहता हूँ फिर से वो दिन पलट आयें
कि माँ के चुल्लू को मेरा गिलास होना पड़े

16.  माँ के सामने कभी खुलकर नहीं रोना,
जहाँ बुनियाद हो, इतनी नमी अच्छी नहीं होती

17.  आंखें हैं कि उन्हें घर से निकलने नहीं देती
आंसू हैं कि सामान-ए-सफर बांधे हुए हैं

होटों पर हँसी

कभी होती थी तनहाइयों में भी मेरे होटों पर हँसी,
आज महफिलों में भी मुझे दर्द-ऐ-दिल हुआ करता है.
मेरे जीने की आरजू करते थे मेरे दुश्मन भी कभी,
आज मेरा हमदर्द भी मेरी रुक्सती की दुआ करता है.

समझता था ख़ुद को खुशनसीब जिसे मेरे दिल में पनाह मिलती थी,
आज अश्क भी मेरी आंखों में ख़ुद को यतीम समझता है.
खूबसूरत होता था हर वो कलाम जो मैं कलम से लिकता था,
आज लहू से लिखा "एहसास" भी ख़ुद को अल्फाज़ समझता है.

कभी जीता था मेरा कातिल भी मेरी आशिकुई की उम्मीद में,
आज मेरा दिल भी मेरी ज़िन्दगी के लिए कहाँ धड़कता है.
क्या होती है बेवफाई ये तो कभी मालूम न था,
आज ज़र्रा ज़र्रा मेरा मोहब्बत के लिए तड़पता है.
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