15 Jul 2011

कुछ इश्क़ किया, कुछ काम किया

वो लोग बोहत खुश-किस्मत थे
जो इश्क़ को काम समझते थे
या काम से आशिकी करते थे

हम जीते जी मसरूफ रहे
कुछ इश्क़ किया, कुछ काम किया
काम इश्क के आड़े आता रहा
और इश्क से काम उलझता रहा
फिर आखिर तंग आ कर हमने
दोनों को अधूरा छोड दिया

फैज़ अहमद फैज़

1 comment:

  1. अनुज जी नमस्कार,
    आपका ब्लॉग देखा, गजलों का अच्छा संग्रह है।

    मेरा नाम श्रीश है, मैं यमुनानगर से सबसे पुराना हिन्दी ब्लॉगर हूँ। कृपया मुझे अपना ईमेल पता दें ताकि संवाद स्थापित हो।

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