फिर एक नयी चिता जला रहा हू
जिस्म सीली लकड़ी जैसे सुलग रहा हैअपनी जली रूह की राख उड़ा कर
रुख हवाओ का दिखा रहा हू
फिर एक नयी चिता जला रहा हू
आज कुछ खुवाब बोए है कागज़ पर
कोशिश है नज्मो को बा - तरतीब करने की
किये जा रहा हू
फिर एक नयी चिता जला रहा हू
कुछ रह गया जो साथ न गया तुम्हारे
दिल की दराजों को फिर से खंगाल कर
आज वोह सामान निकाल रहा हू
फिर एक नयी चिता जला रहा हू
कुछ लम्हे टंगे है मेरे कमरे की दीवार पर
वक़्त की धूल सी जम गई है उन पर
उन्हे उतार रहा हू
फिर एक नयी चिता जला रहा हू
थोड़ी सी खताए रखी है अलमारी के ऊपर
सजाए पता नहीं कब तक आयेगी
एक ज़माने से इंतजार कर रहा हू
फिर एक नयी चिता जला रहा हू
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