आदते भी अजीब होती है
तुम्हारी आदत
चूडिया पहनना
फिर बिना वज़ह उन्हे तोड़ देना
मेरी आदत यह कहना
चूडिया पहनती क्यों हो
अगर तोडनी ही है तो
आदते भी अजीब होती है....
............
समंदर किनारे रेत पर
कभी कभी बैठ जाता हु
सूरज समंदर के उस पर डूबता है
में इस पर तुम्हारे ख्यालो में डूब जाता हु
फर्क सिर्फ इतना है की तुम साथ नहीं होती
आदते भी अजीब होती है....
.............
ऑफिस से निकलता हु किसे काम के लिए
मेरे पैर मुझे अपने आप ही
तुम्हारे गली में ला खड़ा कर देते है
आदते भी अजीब होती है....
.............
मेरी गली में वोह खट्टे बेर वाला
अब भी आ जाता है
में फ़क़त उसे अब भी आवाज़ दे देता हु
पर बेर तो में खाता ही नहीं
आदते भी अजीब होती है....
.............
आज फिर होली का त्योंहार आया
कितनी शरारत करती थी तुम होली के दिन
सुबह सुबह मेरे गालो पर रंग लगा दिया कर देती थी तुम
जब से तुम गई हो ज़िन्दगी के सारे रंग
चले गए है तुम्हारे साथ
आदते भी अजीब होती है....
.............
जब हम पहली बार ऊटी गए थे
तुमने मेरे लिए जो एक घडी खरीदी थी
वोह आज भी अपने वक़्त पर पहरा दे रही है
मेरे दिल आज भी अपने पहरे पर मुस्तैद है
आदते भी अजीब होती है....
.............
में अब भी कार की चाबी जेब में रख कर भूल जाता हु
और पूरे घर में तलाश करता रहता हु
किसे काम से जेब में हाथ डालता हु तो वोह मिल जाती है
और फिर जोर से हंसता हु
पर अब तुम साथ नहीं होती हो
हसी गायब हो जाती है
आदते भी अजीब होती है....
.............
तुम्हारे जाने के बाद
कई दिनों तक बिस्तर ठीक नहीं किया मैंने
तुम्हारी तरफ की चादर में जो सिलवट पड़ी है
औन्धै मुह पड़ा रहता हु सारा दिन उसमे
आदते भी अजीब होती है....
.............
तुम्हारे आवाज़ की आदत सी हो गई है मुझे
जीने के लिए कुछ सांसे कम लगती है तो
टेप रेकॉर्डर में टेप की हुई तुम्हारी आवाज़
कानो में उतार लेता हु
आदते भी अजीब होती है....
.............
गिल्हेरिया अब भी आ जाती है
आँगन में नल के चबूतरे पर
मटर के दाने खाने के लिए
रोज़ खिलाता हु में उन्हे मगर
शक की निगाह से देखती है मुझे बहुत
वोह तुम्हारे हाथो का मज़ा खूब पहचानती होंगी
आदते भी अजीब होती है....
.............
तुम्हारी आदत
चूडिया पहनना
फिर बिना वज़ह उन्हे तोड़ देना
मेरी आदत यह कहना
चूडिया पहनती क्यों हो
अगर तोडनी ही है तो
आदते भी अजीब होती है....
............
समंदर किनारे रेत पर
कभी कभी बैठ जाता हु
सूरज समंदर के उस पर डूबता है
में इस पर तुम्हारे ख्यालो में डूब जाता हु
फर्क सिर्फ इतना है की तुम साथ नहीं होती
आदते भी अजीब होती है....
.............
ऑफिस से निकलता हु किसे काम के लिए
मेरे पैर मुझे अपने आप ही
तुम्हारे गली में ला खड़ा कर देते है
आदते भी अजीब होती है....
.............
मेरी गली में वोह खट्टे बेर वाला
अब भी आ जाता है
में फ़क़त उसे अब भी आवाज़ दे देता हु
पर बेर तो में खाता ही नहीं
आदते भी अजीब होती है....
.............
आज फिर होली का त्योंहार आया
कितनी शरारत करती थी तुम होली के दिन
सुबह सुबह मेरे गालो पर रंग लगा दिया कर देती थी तुम
जब से तुम गई हो ज़िन्दगी के सारे रंग
चले गए है तुम्हारे साथ
आदते भी अजीब होती है....
.............
जब हम पहली बार ऊटी गए थे
तुमने मेरे लिए जो एक घडी खरीदी थी
वोह आज भी अपने वक़्त पर पहरा दे रही है
मेरे दिल आज भी अपने पहरे पर मुस्तैद है
आदते भी अजीब होती है....
.............
में अब भी कार की चाबी जेब में रख कर भूल जाता हु
और पूरे घर में तलाश करता रहता हु
किसे काम से जेब में हाथ डालता हु तो वोह मिल जाती है
और फिर जोर से हंसता हु
पर अब तुम साथ नहीं होती हो
हसी गायब हो जाती है
आदते भी अजीब होती है....
.............
तुम्हारे जाने के बाद
कई दिनों तक बिस्तर ठीक नहीं किया मैंने
तुम्हारी तरफ की चादर में जो सिलवट पड़ी है
औन्धै मुह पड़ा रहता हु सारा दिन उसमे
आदते भी अजीब होती है....
.............
तुम्हारे आवाज़ की आदत सी हो गई है मुझे
जीने के लिए कुछ सांसे कम लगती है तो
टेप रेकॉर्डर में टेप की हुई तुम्हारी आवाज़
कानो में उतार लेता हु
आदते भी अजीब होती है....
.............
गिल्हेरिया अब भी आ जाती है
आँगन में नल के चबूतरे पर
मटर के दाने खाने के लिए
रोज़ खिलाता हु में उन्हे मगर
शक की निगाह से देखती है मुझे बहुत
वोह तुम्हारे हाथो का मज़ा खूब पहचानती होंगी
आदते भी अजीब होती है....
.............
No comments:
Post a Comment