कभी चढ़ तो कभी उतर जाएँ
लहर बन कर मगर किधर जाएँ
इसलिए भी कुरेदा करते हैं
ज़ख्म दिल के कहीं ये भर न जाएँ
दिया है ज़ख्म अब न देना दवा
टुकड़े दिल के न सब बिखर जाएँ
लौट आयें हैं हम तेरे दिल से
आप भी बस अब अपने घर जाए
कौन हमको मानाने आएगा
आप ही रूठ कर अगर जाएँ
दिल "सागर" से लगाये ही रखना
भूल से भी न वो सुधर जाएँ
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