30 Apr 2012

मेरी तसवीर में रंग और किसीका तो नहीं

मेरी तसवीर में रंग और किसीका तो नहीं
घेर लें मुझको सब आँखें, मैं तमाशा तो नहीं

ज़िन्दगी तुझसे हर इक साँस पे समझौता करूँ
शौक़ जीने का है मुझको, मगर इतना तो नहीं

रूह को दर्द मिला, दर्द को आँखें न मिलीं
तुझको महसूस किया है, तुझे देखा तो नहीं

सोचते-सोचते दिल डूबने लगता है मेरा
ज़ेहन की तय में ‘मुज़फ्फर’ कोई दरिया तो नहीं

25 Apr 2012

ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया

ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया
जाने क्यों आज तेरे नाम पे रोना आया
यूँ तो हर शाम उम्मीदों में गुजर जाती थी
आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया
कभी तक़दीर का मातम, कभी दुनिया का गिला
मंजिल-ए-इश्क़ में हर गाम पे रोना आया
(गाम == कदम)
जब हुआ जिक्र जमाने में मोहब्बत का ‘शक़ील’
मुझको अपने दिल-ए-नाकाम पे रोना आया

18 Apr 2012

इश्क़ में ग़ैरत-ए-जज़्बात ने रोने न दिया

     इश्क़ में ग़ैरत-ए-जज़्बात ने रोने न दिया
     वरना क्या बात थी किस बात ने रोने न दिया

     आप कहते थे के रोने से न बदलेंगे नसीब
     उम्र भर आपकी इस बात ने रोने न दिया

     रोनेवालों से कह दो उनका भी रोना रो लें
     जिनको मजबूरी-ए-हालात ने रोने न दिया

     तुझसे मिलकर हमें रोना था बहुत रोना था
     तंगी-ए-वक़्त-ए-मुलाक़ात ने रोने न दिया

     एक दो रोज़ का सदमा हो तो रो लें 'फ़ाकिर'
    हम को हर रोज़ के सदमात ने रोने न दिया

     - सुदर्शन फ़ाकिर

12 Apr 2012

अशआर

हर ज़ख्म नया पुराने ज़ख्मों की गिनती घटा देता है
जाने मुझे कब रखना उनके सितम का हिसाब आएगा

--अज्ञात

हमारा तजकिरा छोडो, हम ऐसे लोग हैं जिन को
मोहब्बत कुछ नहीं कहती, वफायें मार जाती हैं

--अज्ञात

लोग सीने में कैद रखते हैं
हमने सर पर चढ़ा लिया दिल को

--अज्ञात

दियो का कद घटाने के लिए रातें बड़ी करना ,
बड़े शेहरो में रहना हो तो बातें बड़ी करना
मोहब्बत में बिछड़ने का हुनर सबको नहीं आता ,
किसी को छोड़ना हो तो मुलाकातें बड़ी करना

--अज्ञात


अभी मसरूफ हूँ काफी, कभी फुरसत में सोचूंगा
के तुझको याद करने में, मैं क्या क्या भूल जाता हूँ

--अज्ञात 
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