मैं पट्रीयों की तरहा ज़मी पर पड़ा रहा
सीने से गम गुज़रते रहे रेल की तरह
--मुनव्वर राणा
नादान है वो कितना कुछ समझता ही नही है फ़राज
सीने से लगा के पूछता है कि धडकन तेज क्यो है ?
--अहमद फराज़
बिछड़ना उसकी ख्वाहिश थी न मेरी आरजू लेकिन
जरा सी हिचक ने...ये कारनामा कराया है
--अज्ञात
अब देखते हैं हम दोनों कैसे जुदा हो पायेंगे
तुम मुकद्दर का लिखा कहते हो हम अपनी दुआ को आजमाएंगे
--अज्ञात
मौत भी कम खूबसूरत तो नहीं होगी
जो इसको देखता है जिंदगानी छोड़ जाता है
--अज्ञात
कर रहा था गम-ए-जहां का हिसाब
आज तुम याद बेहिसाब आये
--फैज अहमद फैज
कईं दर्दों को अब दिल में जगह मिल जायेगी
वो गया कुछ जगह खाली इतनी छोड़ कर
--अज्ञात
माना के हर एक की जिंदगी में गम आते हैं मगर
जितने गम मुझे मिले उतनी मेरी उम्र न थी.
--अज्ञात
अफवाह किसी ने फैलाई थी तेरे शहर में होने की,
मैं हर एक दर पर मुकद्दर आज़माता रहा..
--अज्ञात
कभी चाहत भरे दिन रात अच्छे नही लगते
कभी अच्छे तालुकात भी अच्छे नही लगते
कभी दिल चाहता है उसकी मूठी में धडकना
कभी हाथो में उसके हाथ भी अच्छे नही लगते
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मेरी दास्तान-ए-हसरत वो सुना सुना के रोये
मेरे आजमाने वाले मुझे आजमा के रोये
कोई ऐसा अहल-ए-दिल हो के फ़साना-ए-मोहब्बत
मैं उसे सुना के रोऊँ, वो मुझे सुना के रोये
मेरे पास से गुजार कर मेरा हाल तक न पूछा
मैं ये कैसे मान जाऊं के वो दूर जा के रोये
--अहमद फराज़
तेरे क़रीब वो देखा नहीं गया
वो ले गया तुझे,रोका नहीं गया
यादें उभर गईं,बातें निखर गईं
मैं रात भर जगा ,सोया नहीं गया
तुझसे बिछुड़ गए ,फिर भी जुड़े रहे
तेरे ख़याल को तोडा नहीं गया
कितने बरस हुए , तेरी खबर नहीं
तेरे सिवाय कुछ ,सोचा नहीं गया
हर मोड़ पर मिले ,कितने हँसीन रंग
फिर भी कभी ये दिल, मोड़ा नहीं गया
कुछ साल एक दम, आकर खड़े हुए
ख़त देख तो लिया ,खोला नहीं गया
आसान था जिसे , कहना बहुत तुझे
वो ढाई लफ्ज़ भी , बोला नहीं गया
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खैरात मैं मिली ख़ुशी मुझे अच्छी नहीं लगती ..
मैं अपने ग़ममें रहता हूँ नवाबो की तरह !!
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