चलो अच्छा हुआ, जो तुम मेरे दर पे
नहीं आए , तुम झुकते नहीं, और मै
चौखटें ऊंची कर नही पाता …
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समेट कर रखे ये कोरे पन्ने एक रोज
बिखर जाएंगे …
जिंदगी तेरे किस्से खामोश रहकर
भी बयां हो जाएंगे…
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कोई अजनबी ख़ास हो रहा है,
लगता है फिर प्यार हो रहा है !!
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वो तूफ़ान है या ज़लज़ला है,
जो भी है है बड़ा दिलजला है ।
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मेरी फितरत ही कुछ ऐसी है कि,
दर्द सहने का लुत्फ़ उठाता हु मैं…
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“हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते …..
वक़्त की शाख़ से लम्हें नहीं तोड़ा करते”
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मैंने पूछा लोग कब चाहेंगे, मुझे
मेरी तरह……
बस मुस्कुरा के कह दिया सवाल अच्छा है….!!
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उसने यह सोचकर अलविदा कह
दिया……
गरीब लोग हैं, मुहब्बत के सिवा क्या देँगे…..!!
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न करवटे थी न बेचैनियाँ थी,,
क्या गजब की नीँद थी मोहब्बत से पहले…
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मैं क्या महोब्बत करूं किसी से, मैं तो गरीब हूँ….
लोग अक्सर बिकते है, और खरीदना मेरे बस में नहीं….
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अब तो इन आँखों से भी जलन होती है मुझे…
खुली हो तो ख्याल तेरे!
बंद हो तो ख़्वाब तेरे!..
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मेरी आँखों को सुर्ख़ दैख कर केहते हे लौग,,
लगता हे…तेरा प्यार तुझे आज़माता बहुत हे..
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सबब तलाश करो…..अपने हार जाने का,,
किसी की जीत पर रोने से कुछ नहीं होगा..
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लेकर के मेरा नाम मुझे कोसता तो है,
नफरत ही सही, पर वह मुझे सोचता तो है…
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खुद को खुद की खबर न लगे
कोई अच्छा भी इस कदर न लगे….
आपको देखा है उस नजर से
जिस नजर से आपको नजर न लगे ..
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छुपा लूंगा तुझे इस तरह से मेरी बाहों में;
हवा भी गुज़रने के लिए इज़ाज़त मांगे;
हो जाऊं तेरे इश्क़ में मदहोश इस तरह;
कि होश भी वापस आने के इज़ाज़त मांगे।
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पूछते थे ना कितना प्यार है हमें तुम से
लो अब गिन लो… ये बूँदें बारिश की…
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इस कदर उधार लेके खाया है मेने,,,कि दुकानदार भी हमारी जिंदगी की दुआ करते हैं…
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घर में तो अब क्या रक्खा है ! वैसे आओ तलाश करें,
शायद कोई ख्व़ाब पड़ा हो इधर उधर किसी कोने में…
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तेरे प्यार में हुनर आ गया है
वकीलों सा,
मुझसे मिलने की
तारीख पर तारीख दिए जाते हो …
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रोक कर बैठे हैं कई समंदर आँखों में
दगाबाज़ हो सावन तो क्या…
हम खुद ही बरस लेंगे…
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हो गई हो कोई भूल, तो दिल से माफ़ कर देना….
सुना है कि, सोने के बाद, हर किसी की सुबह नहीं होती..!!
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तम्मन्ना है की कोई हमारी सख्शियत से भी प्यार करे।
वरना हैसियत से प्यार तो तवायफ़े भी करती हैं।
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दिल है कदमों पे किसी के सर झुका हो या न हो,
बंदगी तो अपनी फ़ितरत है, ख़ुदा हो या न हो।
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यूँ तो सिखाने को ज़िन्दगी बहुत कुछ सिखाती है…!!
मगर ,,
झूठी हंसी हँसने का हुनर तो बस मोहब्बत ही सिखाती है…!!
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मैँ कैसा हूँ’ ये कोई नहीँ जानता,
मै कैसा नहीँ हूँ’
ये तो शहर का हर शख्स बता सकता है…
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एक तेरे बगैर ही ना गुज़रेगी ये जिंदगी….
बता मैँ क्या करूँ सारे ज़माने की मोहब्बत लेकर॥
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जेबका वजन बढाते हुए
अगर दिलपे वजन बढे….
तो समझ लेना
कि सौदा घाटेका ही है..!
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उस्ताद ए इश्क सच कहा तूने.,
बहुत नालायक हूँ मै…
मुद्दत से इक शख्स को अपना बनाना नही आया.
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“कुछ लोग दुनिया से डर कर फैसले छोड़ देते हैं ,
और कुछ लोग हमारे फैसले से डर कर
दुनिया छोड़ देते हैं…!!
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चांद रोज़ छत पर आकर इतराता बहुत था,
कल रात मैंने भी उसे तेरी तस्वीर दिखा दी.
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हम ना कहते थे वक्त ज़ालिम है,
देखलो ! ख़्वाब हो गए तुम भी।
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औरों के लीए जीते थे, कीसी को कोई शीकायत न थी।
अपने लीए जीने का क्या सोचा, सारा ज़माना दुश्मन हो गया…
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कितनी छोटी सी दुनिया है मेरी,
एक मै हूँ और एक दोस्ती तेरी…!!
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रात भारी सही कटेगी ज़रूर बापु,
दिन कडा था, मगर गुज़र के रहा..
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वो दुआएं काश मैने दीवारों से मांगी होती,,
ऐ खुदा……
सुना है कि उनके तो कान होते है…
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तुम्हारे ख्वाबों को गिरवी रखके…
तकिये से रोज़ रात थोड़ी नींद उधार लेता हु..
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शायरी मेरा शौक नहीं….
ये तो मोहोब्बत की कुछ सज़ाएं हैं…
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पलकें खुली सुबह तो ये जाना हमने,
मौत ने आज फिर हमें ज़िन्दगी के हवाले कर दिया.!
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हर बार मिली है मुझे अनजानी सी सज़ा,
मैं कैसे पूछूं तकदीर से मेरा कसूर क्या है।
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नरम नरम फूलों का रस निचोड़ लेती है..
पत्थर के दिल होते है तितलियों के सीने में…
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अजीब सी बेताबी है तेरे बिना,
रह भी लेते है और रहा भी नही जाता…
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“जाने क्यों रिश्तों में जज्बात बदल जाते हैं.
कभी लोग तो कभी हालात बदल जाते हैं.”
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लोग जाते हे मंदीर मस्जीद, दुआ मांगने राम से,
जनमदीन हो मुबारक, तु मीला हमे साकी जाम से |
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दुअा करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत,
यह एक चिराग कई आंधियो पर भारी है !!
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ना इश्क़ हार मानता
और ना ही दिल बात मानता
क्यों नहीं तुम ही मान जाते,,,,
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“टूट जाऊँ मोहब्बत में या फिर टूट कर मोहब्बत करुँ….
इस बार मेरे पास बस इक यहीं रास्ता हैं..”
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सिगरेट के साथ बुझ गया सितारा शाम का,
मयखाने पुकारे.. ग्लास की उम्र होने आई है…
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