दयार-ए-दिल की रात में चिराग़ सा जला गया
मिला नहीं तो क्या हुआ वो शक़्ल तो दिखा गया
जुदाइयों के ज़ख़्म दर्द-ए-ज़िंदगी ने भर दिये
तुझे भी नींद आ गई मुझे भी सब्र आ गया
मिला नहीं तो क्या हुआ वो शक़्ल तो दिखा गया
जुदाइयों के ज़ख़्म दर्द-ए-ज़िंदगी ने भर दिये
तुझे भी नींद आ गई मुझे भी सब्र आ गया