कोई पूछ रहा है मुझसे मेरी ज़िन्दगी की कीमत
मुझे याद आ रहा है तेरा वो हल्का सा मुस्कुराना
मुझ पर सितम ढा गये मेरी ग़ज़ल के शेर,
पढ़ पढ़ के खो रहे हैं वो किसी और के ख्याल में
--मरीज़
कमबख्त मानता ही नहीं दिल उसे भूलने को
मैं हाथ जोड़ता हूँ तो ये पांव पड़ जाता है
--अज्ञात
वही ज़बान, वही बातें मगर है कितना फरक
तेरे नाम से पहले और तेरे नाम के बाद
--अज्ञात
कितना इख्तियार था उसको अपनी इस चाहत पे "अजनबी"
इस लिए जब चाहा याद किया, जब चाहा भुला दिया
--अजनबी एक गुमनाम शायर
दिल लगी में वक़्त-ए -तन्हाई ऐसा भी आता है
कि रात चली जाती है मगर अँधेरे नहीं जाते
--अज्ञात
जाते हुए उसने सिर्फ इतना कहा था मुझसे
ओ पागल ... अपनी ज़िंदगी जी लेना, वैसे प्यार अच्छा करते हो
--अज्ञात
मुझे याद आ रहा है तेरा वो हल्का सा मुस्कुराना
मुझ पर सितम ढा गये मेरी ग़ज़ल के शेर,
पढ़ पढ़ के खो रहे हैं वो किसी और के ख्याल में
--मरीज़
कमबख्त मानता ही नहीं दिल उसे भूलने को
मैं हाथ जोड़ता हूँ तो ये पांव पड़ जाता है
--अज्ञात
वही ज़बान, वही बातें मगर है कितना फरक
तेरे नाम से पहले और तेरे नाम के बाद
--अज्ञात
कितना इख्तियार था उसको अपनी इस चाहत पे "अजनबी"
इस लिए जब चाहा याद किया, जब चाहा भुला दिया
--अजनबी एक गुमनाम शायर
दिल लगी में वक़्त-ए -तन्हाई ऐसा भी आता है
कि रात चली जाती है मगर अँधेरे नहीं जाते
--अज्ञात
जाते हुए उसने सिर्फ इतना कहा था मुझसे
ओ पागल ... अपनी ज़िंदगी जी लेना, वैसे प्यार अच्छा करते हो
--अज्ञात