16 Mar 2013

आदते

तुमको क्या चाह हमारी सारी चाहते बदल गयी!!

अच्छी थी या बुरी पता नहीं  सारी आदते बदल गयी!!

क्या सोचा था की चाहेंगे किसी को अपने से ज्यादा!!

जो मशहूर थी हमारे लिए वो सारी  कहावते  बदल गयी!!

ये मोहब्बत भी है क्या रोग



ये मोहब्बत भी है क्या रोग ‘फ़राज़’
जिसको भूले वो सदा याद आया।

बहुत उदास है इक शख़्स तेरे जाने से
जो हो सके तो चला आ उसी की ख़ातिर तू

आ के अब तस्लीम कर लें तू नहीं तो मैं सही
कौन मानेगा के हम में बेवफ़ा कोई नहीं

ख़ुद को यूँ महसूर कर बैठा हूँ अपनी ज़ात में
मंज़िलें चारों तरफ़ है रास्ता कोई नहीं

फटी-फटी हुई आँखों से यूँ न देख मुझे
तुझे तलाश है जिस की वो शख़्स मर भी गया

सुना है बोलें तो बातों से फूल झड़ते हैं
ये बात है तो चलो बात करके देखते हैं

उसकी वो जाने उसे पासे-वफ़ा था कि न था
तुम फ़राज़ अपनी तरफ़ से तो निभाते जाते।

रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ

यही कहा था मेरे हाथ में है आईना
तो मुझपे टूट पड़ा सारा शहर नाबीना

कितने नादान हैं तेरे भूलने वाले के तुझे
याद करने के लिये उम्र पड़ी हो जैसे

कहा था किसने के अहद-ए-वफ़ा करो उससे
जो यूँ किया है तो फिर क्यूँ गिला करो उससे

8 Mar 2013

मंज़िलें चारों तरफ़ है रास्ता कोई नहीं - अहमद फ़राज़


ये मोहब्बत भी है क्या रोग ‘फ़राज़’
जिसको भूले वो सदा याद आया।

बहुत उदास है इक शख़्स तेरे जाने से
जो हो सके तो चला आ उसी की ख़ातिर तू

आ के अब तस्लीम कर लें तू नहीं तो मैं सही
कौन मानेगा के हम में बेवफ़ा कोई नहीं

ख़ुद को यूँ महसूर कर बैठा हूँ अपनी ज़ात में
मंज़िलें चारों तरफ़ है रास्ता कोई नहीं

फटी-फटी हुई आँखों से यूँ न देख मुझे
तुझे तलाश है जिस की वो शख़्स मर भी गया

सुना है बोलें तो बातों से फूल झड़ते हैं
ये बात है तो चलो बात करके देखते हैं

उसकी वो जाने उसे पासे-वफ़ा था कि न था
तुम फ़राज़ अपनी तरफ़ से तो निभाते जाते।

रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ

यही कहा था मेरे हाथ में है आईना
तो मुझपे टूट पड़ा सारा शहर नाबीना

कितने नादान हैं तेरे भूलने वाले के तुझे
याद करने के लिये उम्र पड़ी हो जैसे

कहा था किसने के अहद-ए-वफ़ा करो उससे
जो यूँ किया है तो फिर क्यूँ गिला करो उससे

मंज़िलें चारों तरफ़ है रास्ता कोई नहीं - अहमद फ़राज़


ये मोहब्बत भी है क्या रोग ‘फ़राज़’
जिसको भूले वो सदा याद आया।

बहुत उदास है इक शख़्स तेरे जाने से
जो हो सके तो चला आ उसी की ख़ातिर तू

आ के अब तस्लीम कर लें तू नहीं तो मैं सही
कौन मानेगा के हम में बेवफ़ा कोई नहीं

ख़ुद को यूँ महसूर कर बैठा हूँ अपनी ज़ात में
मंज़िलें चारों तरफ़ है रास्ता कोई नहीं

फटी-फटी हुई आँखों से यूँ न देख मुझे
तुझे तलाश है जिस की वो शख़्स मर भी गया

सुना है बोलें तो बातों से फूल झड़ते हैं
ये बात है तो चलो बात करके देखते हैं

उसकी वो जाने उसे पासे-वफ़ा था कि न था
तुम फ़राज़ अपनी तरफ़ से तो निभाते जाते।

रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ

यही कहा था मेरे हाथ में है आईना
तो मुझपे टूट पड़ा सारा शहर नाबीना

कितने नादान हैं तेरे भूलने वाले के तुझे
याद करने के लिये उम्र पड़ी हो जैसे

कहा था किसने के अहद-ए-वफ़ा करो उससे
जो यूँ किया है तो फिर क्यूँ गिला करो उससे

मंज़िलें चारों तरफ़ है रास्ता कोई नहीं - अहमद फ़राज़


ये मोहब्बत भी है क्या रोग ‘फ़राज़’
जिसको भूले वो सदा याद आया।

बहुत उदास है इक शख़्स तेरे जाने से
जो हो सके तो चला आ उसी की ख़ातिर तू

आ के अब तस्लीम कर लें तू नहीं तो मैं सही
कौन मानेगा के हम में बेवफ़ा कोई नहीं

ख़ुद को यूँ महसूर कर बैठा हूँ अपनी ज़ात में
मंज़िलें चारों तरफ़ है रास्ता कोई नहीं

फटी-फटी हुई आँखों से यूँ न देख मुझे
तुझे तलाश है जिस की वो शख़्स मर भी गया

सुना है बोलें तो बातों से फूल झड़ते हैं
ये बात है तो चलो बात करके देखते हैं

उसकी वो जाने उसे पासे-वफ़ा था कि न था
तुम फ़राज़ अपनी तरफ़ से तो निभाते जाते।

रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ

यही कहा था मेरे हाथ में है आईना
तो मुझपे टूट पड़ा सारा शहर नाबीना

कितने नादान हैं तेरे भूलने वाले के तुझे
याद करने के लिये उम्र पड़ी हो जैसे

कहा था किसने के अहद-ए-वफ़ा करो उससे
जो यूँ किया है तो फिर क्यूँ गिला करो उससे

मंज़िलें चारों तरफ़ है रास्ता कोई नहीं - अहमद फ़राज़


ये मोहब्बत भी है क्या रोग ‘फ़राज़’
जिसको भूले वो सदा याद आया।

बहुत उदास है इक शख़्स तेरे जाने से
जो हो सके तो चला आ उसी की ख़ातिर तू

आ के अब तस्लीम कर लें तू नहीं तो मैं सही
कौन मानेगा के हम में बेवफ़ा कोई नहीं

ख़ुद को यूँ महसूर कर बैठा हूँ अपनी ज़ात में
मंज़िलें चारों तरफ़ है रास्ता कोई नहीं

फटी-फटी हुई आँखों से यूँ न देख मुझे
तुझे तलाश है जिस की वो शख़्स मर भी गया

सुना है बोलें तो बातों से फूल झड़ते हैं
ये बात है तो चलो बात करके देखते हैं

उसकी वो जाने उसे पासे-वफ़ा था कि न था
तुम फ़राज़ अपनी तरफ़ से तो निभाते जाते।

रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ

यही कहा था मेरे हाथ में है आईना
तो मुझपे टूट पड़ा सारा शहर नाबीना

कितने नादान हैं तेरे भूलने वाले के तुझे
याद करने के लिये उम्र पड़ी हो जैसे

कहा था किसने के अहद-ए-वफ़ा करो उससे
जो यूँ किया है तो फिर क्यूँ गिला करो उससे

हार जाने का हौसला है मुझे- अहमद फ़राज़

ज़िन्दगी से यही गिला है मुझे
तू बहुत देर से मिला है मुझे
हमसफ़र चाहिये हूज़ूम नहीं
इक मुसाफ़िर भी काफ़िला है मुझे
तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल
हार जाने का हौसला है मुझे
लब कुशां हूं तो इस यकीन के साथ
कत्ल होने का हौसला है मुझे
दिल धडकता नहीं सुलगता है
वो जो ख्वाहिश थी, आबला है मुझे
कौन जाने कि चाहतो में फ़राज़
क्या गंवाया है क्या मिला है मुझे
ज़िन्दगी से यही गिला है मुझे
तू बहुत देर से मिला है मुझे
हमसफ़र चाहिये हूज़ूम नहीं
इक मुसाफ़िर भी काफ़िला है मुझे
तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल
हार जाने का हौसला है मुझे
लब कुशां हूं तो इस यकीन के साथ
कत्ल होने का हौसला है मुझे
दिल धडकता नहीं सुलगता है
वो जो ख्वाहिश थी, आबला है मुझे
कौन जाने कि चाहतो में फ़राज़
क्या गंवाया है क्या मिला है मुझे
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