30 Apr 2012

मेरी तसवीर में रंग और किसीका तो नहीं

मेरी तसवीर में रंग और किसीका तो नहीं
घेर लें मुझको सब आँखें, मैं तमाशा तो नहीं

ज़िन्दगी तुझसे हर इक साँस पे समझौता करूँ
शौक़ जीने का है मुझको, मगर इतना तो नहीं

रूह को दर्द मिला, दर्द को आँखें न मिलीं
तुझको महसूस किया है, तुझे देखा तो नहीं

सोचते-सोचते दिल डूबने लगता है मेरा
ज़ेहन की तय में ‘मुज़फ्फर’ कोई दरिया तो नहीं

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