18 Apr 2012

इश्क़ में ग़ैरत-ए-जज़्बात ने रोने न दिया

     इश्क़ में ग़ैरत-ए-जज़्बात ने रोने न दिया
     वरना क्या बात थी किस बात ने रोने न दिया

     आप कहते थे के रोने से न बदलेंगे नसीब
     उम्र भर आपकी इस बात ने रोने न दिया

     रोनेवालों से कह दो उनका भी रोना रो लें
     जिनको मजबूरी-ए-हालात ने रोने न दिया

     तुझसे मिलकर हमें रोना था बहुत रोना था
     तंगी-ए-वक़्त-ए-मुलाक़ात ने रोने न दिया

     एक दो रोज़ का सदमा हो तो रो लें 'फ़ाकिर'
    हम को हर रोज़ के सदमात ने रोने न दिया

     - सुदर्शन फ़ाकिर

No comments:

Post a Comment

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...