18 Dec 2010

आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा

आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा
कश्ती के मुसाफ़िर ने समन्दर नहीं देखा

बेवक़्त अगर जाऊँगा सब चौंक पड़ेंगे
इक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा

जिस दिन से चला हूँ मिरी मंज़िल पे नज़र है
आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा


ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं ?
तुम ने मेरा कांटों भरा बिस्तर नहीं देखा ?

महबूब का घर हो या बुज़ुर्गों कि ज़मीन
जो छोड़ दिया फिर उसे मुड़ कर नहीं देखा

ख़त ऐसा लिखा है कि नगीने से जड़े हों
इन हाथों ने लेकिन कोई ज़ेवर नहीं देखा

वो मेरे मसाइल को समझ ही नहीं सका
जिस ने मेरी आंखों में समन्दर नहीं देखा


पत्थर मुझे कहता है मेरा  चाहने वाला
मैं मोम हूँ उसने मुझे छूकर नहीं देखा

क़ातिल के तरफ़दार का कहना है कि उसने
मक़तूल की गर्दन पे कभी सर नहीं देखा
बशीर बद्र

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